एक बड़ा सॉसेज

लगभग बहुत समय पहले, Königsberg में एक बहुत बड़ा अकाल (सूखा) पड़ा था। जिसकी वजह से सुबह में बच्चों को सिर्फ अपनी माँ से रोटी का एक टुकड़ा और दूध का एक घूंट मिलता था। और फिर भले ही वे कितने भी भूखे क्यों न हो, उन्हें रात के खाने से पहले और कुछ भी नहीं मिलता था। अपने बच्चों को ऐसी हालत में देखकर माँ को बहुत तकलीफ होती थी, लेकिन खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था।

लोग पहले ही चूहे, बिल्लियों और कुत्तों को खा चुके थे और अच्छे दिन आने के भी कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। इससे भी बदतर यह हुआ कि पूरी गर्मियों में बारिश हो रही थी, और इस वजह से खेत में कोई फसल नहीं उगी। हर जगह मायूसी भरा माहौल छाया हुआ था।

हर कोई उदास था। सारी दुकानें बंद हो चुकी थी और जिन सड़कों पर लोगों का आना-जाना लगा रहता था वो अब सुनसान हो चुकी थी।

इस मुश्किल भरे समय में शहर के सबसे बड़े और बुद्धिमान लोग आगे आए और उन्होंने मीटिंग की। अकाल (सूखा) को खत्म होना होगा। हर एक ने कोई न कोई सुझाव दिया, लेकिन कोई भी इतना अच्छा नहीं था। ऐसा करते-करते एक महीना बीत गया और इसका कोई भी हल नहीं निकला, तब उनमें से सबसे बुद्धिमान व्यक्ति आगे आए और कहा, ‘यह सभी परेशानियां देखकर हर कोई मायूस हो गया है। उनका हौसला बढ़ाना हमारा कर्तव्य है। ताकि हम उन्हें कठिन समय के बारे में भूलने में मदद कर सकें।’

अन्य लोग इस बात से सहमत हुए और यह फैसला लिया गया कि शहर के खजाने में आखिरी बचे हुए सिक्कों से एक बड़ा सॉसेज बनाया जाएगा। और हर नागरिक को इसका एक टुकड़ा मिलेगा।

क्योंकि Königsberg समुद्र के किनारे पर है, इसलिए दो लोग एक नाव पर सवार होकर सूअर, काली मिर्च, नमक और अन्य मसाले लेने गए, क्योंकि शहर के आस-पास कुछ भी नहीं बचा था। कुछ हफ्तों के बाद वे भोजन से भरे जहाजों के साथ लौटे। शहर के सभी कसाइयों को सिटी हॉल में आना पड़ा और उन्हें एक बड़ा सॉसेज बनाने का ऑर्डर मिला।

कसाइयों ने खुशी-खुशी इस ऑर्डर को स्वीकार किया! और एक महीने के अंदर उन्होंने एक ऐसा सॉसेज बनाया जैसा पहले किसी ने भी नहीं देखा था। टाउन गेट के सामने एक बड़ी पार्टी की स्थापना की गई थी। फूलों और बड़े-बड़े खंभों पर रंग-बिरंगे झंडों के साथ यह बिल्कुल एक उत्सव की तरह लग रहा था। और साथ ही एक बड़ी टेबल भी थी जिस पर वे सॉसेज रखने वाले थे।

और वह एक बहुत मुश्किल काम था! अगल-बगल में दो-दो लोगों की एक लंबी लाइन सॉसेज को बड़ी-बड़ी डंडियों पर टेबल तक लेकर आई। सामने शहर के संगीतकार थे, एक ड्रम, तुरही और बांसुरी के साथ, उसके बाद मेयर और कॉउन्सिल के सदस्य थे। और साथ ही शहर के उत्साही लोग भी थे।

एक बार जब वे टेबल तक पहुंच गए तो उन्होंने सॉसेज को नीचे रख दिया और संगीतकारों ने मधुर संगीत बजाना शुरू किया। उसके बाद मेयर ने भाषण दिया और स्कूल जाने वाले बच्चों ने बहुत सारे गाने गए। उसके बाद उन्होंने सॉसेज को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना शुरू कर दिया। उस समय बच्चे इतने खुश थे कि जिसका कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता!

क्योंकि जब आपने लंबे समय से ठीक से खाना नहीं खाया हो, तो पेट भरकर खा पाने की खुशी अलग ही होती है। खासकर बच्चों के लिए। सभी के खाने के बाद भी, बहुत सारा सॉसेज अभी भी बचा था।

हर कोई जितना चाहे उसे उतने सॉसेज को अपने घर पर ले जाने की इजाज़त दी गई थी।

सॉसेज को काटने और बांटने में पूरे दो दिन और रात का समय लगा। काम पूरा हो जाने के बाद, नागरिक फिर से भविष्य के लिए उम्मीद करने लगे। बच्चे मुस्कुराते हुए और खुश नज़र आ रहे थे। अगले साल शहर में अच्छी फसल उगी और अकाल खत्म हो गया। दुनिया के हर कोने में Königsberg के बड़े सॉसेज की कहानी बच्चों को सुनाई जाती है। और जो भी इसे सुनता है उसके मुंह में पानी आ जाता है।